नागरिक चुनावों के करीब आते ही, उम्मीदवार सोशल मीडिया पहुंच पर बड़ा दांव लगा रहे हैं।

As civic polls near, candidates bet big on social media reach

सामाजिक मीडिया पर चुनावी लड़ाई शुरू हो गई है

पुणे: 15 जनवरी 2026 को 29 शहरों में होने वाले नगर निगम चुनावों के निकट आने के साथ, जिनमें पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ भी शामिल हैं, सामाजिक मीडिया की लड़ाई शुरू हो गई है। विभिन्न दलों के उम्मीदवार व्यावसायिक सामाजिक मीडिया टीमें नियुक्त कर रहे हैं, इंस्टाग्राम रील्स, फेसबुक पोस्ट और व्हाट्सएप ब्रॉडकास्ट जैसे सामग्री बना रहे हैं ताकि उनकी दृश्यता बढ़ सके।

भाजपा नेता अमोल बालवडकर ने उदाहरण के रूप में सामाजिक मीडिया पर सक्रिय रहकर, नागरिक मुद्दों और विकास कार्यों पर अपडेट पोस्ट किए हैं। स्थानीय नेताओं जैसे घाटे और जगतप ने भी सामाजिक मीडिया का उपयोग युवाओं तक पहुंचने और सीधे मतदाता संवाद को बढ़ावा देने के लिए किया है। स्वतंत्र सामग्री निर्माता ओमकार कंबले ने दो उम्मीदवारों के साथ मासिक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं और मोबाइल-शॉट रील्स और पोस्ट बनाए हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, सामाजिक मीडिया उम्मीदवारों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है जिससे वे मुख्यधारा की मीडिया की सीमाओं को पार कर सकते हैं, युवा मतदाताओं तक पहुंच सकते हैं जो मोबाइल पर महत्वपूर्ण समय बिताते हैं, और सीधे मतदाताओं के साथ संवाद करने के लिए स्थानीय गतिविधियों को साझा कर सकते हैं। स्थानीय सामग्री निर्माता इसे आर्थिक अवसर के रूप में देखते हैं, जिससे वे अभियान सामग्री के लिए भुगतान किए जाने वाले अनुबंध प्राप्त कर सकते हैं।

यह प्रवृत्ति राजनीतिक नकारात्मकता के विपरीत है, जिसमें पीईवी रिसर्च के अनुसार, आधे से अधिक अमेरिकियों को समाचार सामाजिक मीडिया से मिलता है। हालांकि, शोधकर्ताओं को प्लेटफ़ॉर्मों के प्रसार के कारण डेटा को संग्रहीत करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। स्थानीय चुनावों में सामाजिक मीडिया का उपयोग वैकल्पिक से मुख्य अभियान ढांचे में बदल गया है, जिससे मतदाताओं के साथ सीधा संवाद हो सकता है और पत्रकारों के बीच सीमाएं नहीं होती हैं।

भारत में, यह 29 शहरों में होने वाले नगर निगम चुनावों के साथ मेल खाता है, जहां पारंपरिक मीडिया की सीमाएं उम्मीदवारों को युवाओं के लोकप्रिय प्लेटफ़ॉर्मों की ओर धकेलती हैं। वैश्विक स्तर पर, इंस्टाग्राम, टिकटॉक, एक्स (पूर्व में ट्विटर) और नेक्स्टडोर जैसे प्लेटफ़ॉर्म स्वतंत्र और स्थानीय उम्मीदवारों के लिए सिफारिश किए जाते हैं ताकि वे जमीनी समर्थन बना सकें, भ्रांति का सामना कर सकें और मतदान को बढ़ावा दे सकें।

मतदाताओं को उम्मीदवारों की गतिविधियों और स्थानीय मुद्दों के बारे में निरंतर पहुंच मिलती है, विशेष रूप से युवाओं के माध्यम से इंटरैक्टिव प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से, मतदान और सामुदायिक मुद्दों जैसे विकास और समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने में संभावित रूप से संलग्नता बढ़ सकती है। यह स्थानीय और अनावश्यक सामग्री के माध्यम से लक्षित पहुंच के लिए संभव हो सकता है।

हालांकि, यह माइक्रो-टार्गेटेड मैसेजिंग और अनसंग्रहीत डेटा के जोखिमों को बढ़ाता है, जिससे जवाबदेही और मोबिलाइजेशन रणनीतियों के शोध में चुनौतियां उत्पन्न होती हैं। समुदायों के लिए, यह सामाजिक मीडिया की डेमोक्रेटाइजेशन का दोनों सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम है।

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. रोहन मेहता ने कहा, "सामाजिक मीडिया उम्मीदवारों के लिए मतदाताओं के साथ सीधा संपर्क बनाने का एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है। हालांकि, यह भी चिंता का विषय है कि यह भ्रांति और मनिपुलेशन के लिए उपयुक्त हो सकता है।"

चुनावों के निकट आने के साथ, यह स्पष्ट है कि सामाजिक मीडिया का परिणाम निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सफलतापूर्वक सामाजिक मीडिया का उपयोग करने वाले उम्मीदवार अपने प्रतिद्वंद्वियों के ऊपर बढ़त हासिल करेंगे। लेकिन शक्ति के साथ जिम्मेदारी आती है, और मतदाताओं को इन प्लेटफ़ॉर्मों पर सेवित जानकारी के बारे में सावधान रहना चाहिए।

चुनावों के निकट आने के साथ, यह समय है कि मतदाता स्थानीय राजनीति पर सामाजिक मीडिया के प्रभाव के बारे में जागरूक हों और उम्मीदवारों और दलों से जवाबदेही मांगें। केवल तभी हम सामाजिक मीडिया का उपयोग समाज के लिए अच्छा कर सकते हैं।

नोट: यह लेख एक विस्तृत शोध रिपोर्ट पर आधारित है जो विभिन्न स्रोतों से सत्यापित तथ्यों को एकत्र करता है। शोध स्थानीय चुनावों में सामाजिक मीडिया की बढ़ती महत्ता और मतदाताओं, उम्मीदवारों और समुदायों के लिए इसके परिणामों को उजागर करता है।

📰 स्रोत: Hindustan Times - States

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