**हिमाचल प्रदेश: एक वित्तीय समयबम जो विस्फोट करने के लिए तैयार है**
हिमाचल प्रदेश एक वित्तीय संकट के कगार पर है, जो राज्य की अपनी संरचना को उखाड़ फेंकने की धमकी दे रहा है। कुल कर्ज और जिम्मेदारियों का आंकड़ा 95,633 करोड़ रुपये है, जो फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी और बजट मैनेजमेंट (FRBM) एक्ट के सीमा से अधिक है, जो 90,000 करोड़ रुपये है। राज्य की आर्थिक भविष्य की स्थिति अनिश्चितता से भरी हुई है। आंकड़े चौंकाने वाले हैं: 2023-24 के लिए उधार लेने का आंकड़ा 9,043 करोड़ रुपये है, जो 6,342 करोड़ रुपये के सीमा से अधिक है, और 74.11% कर्ज का उपयोग 2024 तक पूर्व ऋणों का भुगतान करने के लिए किया जा रहा है।
यह संकट मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखू के कांग्रेस सरकार की बनावट है, जिसने पिछले बीजेपी शासन से 76,000 करोड़ रुपये का कर्ज विरासत में मिला था। एक आश्चर्यजनक मोड़ पर, सरकार ने हाल ही में एक सितंबर 6, 2025 के अधिसूचना को वापस लिया था, जिसमें कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि को रद्द किया गया था ताकि 100 करोड़ रुपये की बचत की जा सके, लेकिन केंद्रीय कर्मचारी संघों और बीजेपी के विरोध के बाद सरकार ने इसे वापस लिया। यह निर्णय सरकार के कर्मचारियों को वेतन की अनिश्चितता से मुक्ति दिलाने के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
लेकिन यह संकट सिर्फ राज्य के खजाने तक ही सीमित नहीं है। केंद्र सरकार के केंद्रीय अनुदानों में गिरावट आई है, जिसमें रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट (RDG) बीजेपी के काल के दौरान 10,000 करोड़ रुपये से घटकर 3,000 करोड़ रुपये पर आ गया है। उधार लेने की सीमा भी 5% से घटकर 3.5% पर आ गई है, जिससे राज्य की उधार लेने और महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स में निवेश करने की क्षमता कम हो गई है।
संकट का केंद्र मुख्यमंत्री सुखू की कांग्रेस सरकार की कोशिशें हैं कि वे वोट खरीदने के लिए मुफ्त सेवाएं और सब्सिडी दें, जिससे राज्य को 2,000 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया है, जो कि महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स में निवेश करने के लिए उपयोग किया जा सकता था। सरकार की मांग को कम करने के लिए किए गए उपाय, जैसे कि शराब पर 10 रुपये का मिल्क सेस और गाय के गोबर को 3 रुपये/किलो पर खरीदना, प्रभावी नहीं होंगे।
बीजेपी विपक्ष ने तुरंत इस संकट का फायदा उठाया और कांग्रेस सरकार को आर्थिक व्यवस्था के लिए जिम्मेदार ठहराया। पार्टी ने कर्ज के जाल में फंसने की बात कही, जो कि वोटों के लिए दिए गए वादों और पूर्व बीजेपी सरकार के सब्सिडी के कारण बढ़ा है। कांग्रेस सरकार के भीतर ही लड़ाई को भी बीजेपी ने अपने फायदे के लिए उपयोग किया है, जिसमें सुखू के निर्णय को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया गया है ताकि उनकी सरकार को बचाया जा सके।
निष्पक्ष विश्लेषणों ने यह कहा है कि अधिक उधार लेने ने राज्य की आर्थिक समस्याओं को बढ़ाया है, जो कि वोटों के लिए दिए गए वादों और पूर्व बीजेपी सरकार के सब्सिडी के कारण हुआ है। राज्य का जीडीपी अनुपात 43.98% तक पहुंच गया है, जो कि 2023-24 तक है, और उधार लेने का आंकड़ा सीमा से अधिक है। 2024-25 के खर्च का लक्ष्य 52,965 करोड़ रुपये है, जिसमें कर्ज का भुगतान नहीं किया गया है, जो कि राज्य की आर्थिक संवेदनशीलता को दर्शाता है।
इस संकट के परिणाम बहुत बड़े हैं। सार्वजनिक सेवाएं, जिसमें विकास प्रोजेक्ट्स शामिल हैं, को फंड की कमी के कारण विलंबित या रद्द किया जा सकता है। कर्मचारियों को वेतन की अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है, जो कि कुछ समय के लिए वेतन वृद्धि के वापस लेने से थोड़ा कम हुआ है। केंद्र सरकार के केंद्रीय अनुदानों में गिरावट और उधार लेने की सीमा में कटौती ने महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स, जैसे कि हारोली में बुल्क ड्रग पार्क, को प्रभावित किया है, जो कि राज्य के औद्योगिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
हिमाचल प्रदेश का भविष्य संतुलन में है, जैसे कि राज्य आर्थिक व्यवस्था के साथ अपने संघर्ष का सामना कर रहा है। कांग्रेस सरकार के कठोर उपाय, जैसे कि सेस और सब्सिडी की समीक्षा, कुछ समय के लिए लाभदायक हो सकते हैं, लेकिन यह संकट को और भी गहरा बना सकते हैं। केंद्र सरकार की भूमिका को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है, जिसके केंद्रीय अनुदानों में गिरावट और उधार लेने की सीमा में कटौती ने राज्य की आर्थिक स्थिति पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला है।
जैसे कि राज्य अपने जीवन को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है, एक बात स्पष्ट है: हिमाचल प्रदेश को वित्तीय मदद की आवश्यकता है, और यह आवश्यकता अभी है। सवाल यह है कि राज्य के नेता इस वित्तीय संकट
📰 स्रोत: The Hindu - National