अरावली खनन पर जारी गलत जानकारी के बीच, सरकार ने पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को एक साथ लेने का दावा किया है: मंत्री
राजस्थान की कमजोर अरावली पहाड़ियां, जो दो अरब वर्ष पुरानी पहाड़ी शृंखला हैं, 20 नवंबर 2025 को उच्चतम न्यायालय ने नई परिभाषा को स्वीकार करने के बाद से एक गहरे पर्यावरण और राजनीतिक विवाद के केंद्र में रही हैं। इस फैसले ने अरावली पहाड़ियों और शृंखलाओं के सीमांकन के लिए एक 100 मीटर की सीमा निर्धारित करके अरावली पहाड़ियों के बारे में व्यापक विरोध और गर्म बहस को जन्म दिया है।
विवाद का मामला तब और भड़क गया जब राजस्थान में विपक्षी दलों ने नए परिभाषा को कमजोर करने की चेतावनी दी कि इससे खनन को बढ़ावा मिलेगा, जबकि केंद्र सरकार ने दावा किया है कि अरावली पहाड़ियां सुरक्षित हैं। इस मामले में शामिल मंत्री ने सरकार के "पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को एक साथ लेने" के दावे को दोहराया, जिससे पर्यावरण संरक्षण और नियंत्रित आर्थिक गतिविधियों जैसे खनन के बीच संतुलन की बात कही गई।
इन दिनों से विरोध और राजनीतिक बहस में हaryana, Rajasthan और Gujarat के नाम से जुड़े लाइव कवरेज के साथ विवाद और भड़क गया है। इस उच्च-गति की नाटक में मुख्य खिलाड़ी उच्चतम न्यायालय की बेंच, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC), राजस्थान सरकार, विपक्षी दल, संरक्षणवादी, और पर्यावरण विशेषज्ञ हैं।
विपक्षी दल और संरक्षणवादी दल का दावा है कि 100 मीटर की सीमा से अरावली पहाड़ी के लगभग 90% हिस्से को स्वचालित संरक्षण से बाहर कर दिया गया है, जिससे खनन, निर्माण, मरुस्थलीकरण, और जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ गया है। उनका कहना है कि नई परिभाषा की कमजोरी है और इसके परिणामस्वरूप अरावली पहाड़ियों के पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
संरक्षणवादी जैसे कि People for Aravalli collective का कहना है कि अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में खनन का जोड़ा प्रभाव अस्थायी नहीं है, बल्कि यह स्थायी है, जिससे मिट्टी की अस्थिरता, कृषि की गिरावट, और विविधता की हानि होती है।
न्यायालय ने 1980 के दशक से ही राजस्थान और हरियाणा में अनियंत्रित खनन पर रोक लगाने के लिए कई निर्णय लिए हैं, जिसमें अरावली पहाड़ियों के पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए कहा गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अरावली पहाड़ियों की पर्यावरणीय महत्व सिर्फ ऊंचाई के आधार पर नहीं है, बल्कि यह अरावली पहाड़ियों के पर्यावरणीय महत्व को संरक्षित करने के लिए कहा गया है।
अरावली पहाड़ियों का क्षेत्र राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, और दिल्ली एनसीआर में फैला हुआ है। इसे कई दशकों से अनियंत्रित खनन का सामना करना पड़ रहा है। उच्चतम न्यायालय ने 2009 में हरियाणा के कुछ जिलों में खनन पर प्रतिबंध लगाने के लिए कई निर्णय लिए हैं।
20 नवंबर 2025 को उच्चतम न्यायालय का फैसला MoEFCC की सिफारिशों के बाद आया है, जिसमें परिभाषाओं को सामान्य बनाने के लिए कहा गया है। इस फैसले में खनन स्थलों को नियंत्रित करने और विवादों को रोकने के लिए विस्तृत मानचित्रण और प्रबंधन योजना बनाने का निर्देश दिया गया है।
People for Aravalli ने मई 2025 में एक नागरिक रिपोर्ट में हारियाणा के सात अरावली जिलों में गंभीर विरासत की हानि का दस्तावेजीकरण किया है।
राजस्थान, हरियाणा, और गुजरात के स्थानीय समुदायों के लिए, नए परिभाषा के तहत विस्तारित खनन को दिल्ली एनसीआर की ओर बढ़ते मरुस्थलीकरण, जलवायु परिवर्तन, और कृषि उत्पादन में गिरावट का खतरा बढ़ जाएगा। आर्थिक रूप से, यह नियंत्रित खनन से रोजगार और आय को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन अस्थायी पर्यावरणीय नुकसान का खतरा बढ़ जाएगा, जिसमें कमजोर पारिस्थितिकी तंत्र और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षा की कमी शामिल है।
इस विवाद के परिणाम बहुत व्यापक हैं, जिसमें विविधता, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और लंबे समय तक स्थायित्व के लिए खतरा बढ़ जाएगा। अरावली हरित दीवार परियोजना, जिसका उद्देश्य भूमि का पुनर्निर्माण करना है, इस विस्तारित खनन के कारण भी खतरे में पड़ सकती है। इस विवाद के जारी रहने के साथ, एक बात स्पष्ट है कि अरावली पहाड़ियों का भाग्य संतुलन में है, और घड़ी की घंटी बज रही है।
केंद्र सरकार की "पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को एक साथ लेने" की प्रतिबद्धता अभी भी परीक्षण के लिए तैयार है। विपक्षी दलों और आलोचकों के विरोध के सामने सरकार की प्रतिबद्धता काफी है कि पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक गतिविधियों के बीच संतुलन बनाया जाएगा। क्या सरकार का वादा अरावली पहाड़ियों के लिए पर्यावरण संरक्षण के साथ आर्थिक गतिविधियों को संतुलित करने के लिए पर्याप्त होगा?
📰 स्रोत: India Today - Education